खण्डवा जिले में प्रकृति अपने आप में कई रहस्य छुपाये हुए है। इनमे से एक है। चाँदगढ़ रेंज के घने जंगलों के बीच, जयंती माता का मंदिर और उसके पास बहने वाला झरना । भीषण गर्मी में जब जल स्त्रोत सूखने लगते है। तब भी यह झरना निरंतर बहता रहता है।
जयंती माता मंदिर जिसे बाणासुर की तपस्थली भी कहा जाता है । खण्डवा जिला मुख्यालय से नब्बे किलोमीटर दूर नर्मदा के उत्तर तट पर विंध्याचल की सघन पहाड़ियों और घनघोर जंगलों के बीच जयंती माता का मंदिर है। यहां मां जगदंबा जयंती माता जीभ स्वरूप में विराजित हैं। घने जंगल के बीच स्थित इस मंदिर में दर्शन करने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं। नवरात्रि में दर्शन करने वालों की संख्याअधिक रहती है। मंदिर से थोड़ी दूरी पर आकर्षक झरना बहता है। झरने के अंदर ही भैरव बाबा का मंदिर है। इससे यह जगह लोगों को आकर्षित करती है।
खण्डवा – भोपाल मुख्य मार्ग से होते हुए यहां पहुंचा जा सकता है। खण्डवा पुनासा मार्ग से इंदिरा सागर डेम के रास्ते सतवास मार्ग पर 19 किलोमीटर दूरी पर सड़क किनारे , बाई और आपको जयंती माता मन्दिर का बोर्ड लगा दिखाई देगा । यहां वन चौकी है । जहां से आपको घने जंगलों के बीच बने कच्चे रास्ते से , सत्रह किलोमीटर की दूरी तय करनी होगी। तभी आप जयंती माता मंदिर तक पहुंच सकेंगे। कार, बाइक और बस से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।
बड़वाह से कनेरी नदी होते हुए, तीस किलोमीटर की दूरी तय कर मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। वहीं सतवास से साहठ किलोमीटर की दूरी तय कर भक्तगण यहां पहुंचते है ।
यहां माता की प्रतिमा स्वयंभू है। बताते है कि यहां माता की प्रतिमा को कहीं और से लाकर स्थापित नही किया गया। यहां माता स्वयँ प्रकट हुई है। बताया जाता है कि पूर्व में माता की मूर्ति , एक वृक्ष के नीचे, छोटी सी कुटिया में विराजित थी। करीब 35 से 40 साल पहले, यहां संत सत्यागिरी आए थे। उन्होंने जयंती माता मंदिर की कुटिया का जीर्णोद्धार किया। अब यहां माता का विशाल मंदिर है। इसके साथ ही यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए ठहरने की व्यवस्था भी है। वर्ष 2000 में मंदिर को भव्य रूप देने का कार्य प्रारंभ किया गया। वर्ष 2004 में मंदिर समिति का गठन किया गया। परिसर में ही श्रद्धालु व परिक्रमा वासियों के लिए , दो धर्मशालाओं का निर्माण किया गया। इससे यहां आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में वृद्धि हुई है। मन्दिर के पुजारी बताते है की यहां आदि शक्ति की जिव्हा गिरी थी। तबसे माता जिव्हा स्वरूप में यहां विराजित है । इस स्थान को बाणासुर की तपस्थली भी कहा जाता है. यहां चैत्र माह की नवरात्रि में मंदिर समिति द्वारा नौ दिवसीय मेला लगाया जाता है।
मान्यता है कि जयंती माता के मंदिर में श्रद्धालु जो कुछ भी मांगते हैं, उन्हें मिलता है। उनकी मनोकामना, माता अवश्य पूरी करती है। यहां आपको मन्दिर के समीप एक स्थान पर लगी लोहे की जाली में प्लास्टिक की पन्नी लिपटी हुई दिखाई देगी। प्रचुर मात्रा में प्लास्टिक की पन्नी को गांठ बांधकर लगाया गया है। इसके पीछे ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त यहां पन्नी बाँधकर मां से कुछ मांगता है। माता उसकी मनोकामना पूर्ण करती है। माता के मंदिर से कुछ दूरी पर , खाड़ी वकनेरी नदी का , संगम स्थल है। माता मंदिर से कुछ दूरी पर एक पहाड़ी के ढलान के नीचे , कनेरी नदी के किनारे, घने वन के बीच भैरव गुफा है।यह गुफा एक विशाल चट्टान के नीचे है। इसी चट्टान के ऊपर से निरंतर झरना बहता रहता है। इसमें काल भैरव की मूर्ति स्थापित है। भैरव गुफा की खास बात यह कि गुफा के अंदर जाने वाले सभी भक्तों का स्नान, झरने से गिरते पानी से स्वतः ही हो जाता है। भैरव गुफा के द्वार के ऊपर , पहाड़ से प्राकृतिक झरना बहता है। जयंती माता मंदिर से करीब तीन सौ मीटर की दूरी पर झरना है। झरने का उद्गम स्थल इस प्वाइंट से करीब दो किलोमीटर पहले है। यहां पहाड़ो पर लगे पेड़ो की जड़ों से रिसकर निकला पानी समतल जमीन पर बहता है। भीषण गर्मी हो, या अल्प वर्षा। यह झरना इसी तरह सतत बहता रहता है। यहां पहुँचना थोड़ा मुश्किल जरूर है। लेकिन यहां पहुंचने के बाद दिखाई देने वाले प्राकृतिक नज़ारे मन मोह लेते है। झरने तक पहुंचने के लिए आपको जंगल के बीच , पहाड़ी की ढलान नुमा कच्ची पगडण्डी से उतरना होगा। फिर पहाड़ी नदी को पार करने की मुश्किल सामने होगी। इस पहाड़ी नदी में बारिश के मौसम में जाना मना है। बारिश के मौसम को छोड़कर , जब यहां पानी का प्रवाह कम रहता है। तभी इस नदी को पार कर झरने तक पहुंचा जा सकता है। नदी में पानी के बीच निकली फिसलन भरी चट्टानों पर कदम जमाते हुए नदी पार करने के बाद एक लोहे की सीढ़ी दिखाई देगी। जो मन्दिर समिति द्वारा लगाई गई है । इस सीढ़ी के करीब से कलरव करता झरना बहता है। जिसके पानी की बौछारे सीढ़ी पर भी पढ़ती है। इसी सीढ़ी से उतरकर आप झरने के नीचे पहुंच सकते है। यहां आने वाले अधिकांश भक्त झरने में स्नान का आनन्द उठाते हुए झरने की चट्टान के नीचे भैरव गुफा में प्रवेश करते है। कुछ भक्त झरने में स्नान पश्चात ही जयंती माता मंदिर में प्रवेश करते है।