यह है तंजौर का बृहदेश्वर शिव मंदिर । वैसे तो इस मंदिर की बहुत सी विशेषता है पर सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि इस मंदिर के गुम्बद पर एक विशाल पत्थर रखा हुआ है और इस पत्थर का वजन 88 टन है। जब गूगल पर सर्च किया तो पाया कि एक भारतीय मूल के हाथी का वजन औसतन 5000 किग्रा तक होता है. मतलब इस गोलाकार पत्थर का वजन लगभग 18 हाथियों के वजन के बराबर है । अब प्रश्न उठता है कि इतनी भारी शिला 216 फुट की ऊचाई तक कैसे चढाई गई । क्योंकि हमें तो पढाया जाता है कि उस समय तक 88 टन वजन उठाने के लायक किसी क्रेन का आविष्कार नहीं किया गया था ।
इसका एक ही निष्कर्ष निकलता है कि इतिहास लिखने वाले या तो जानते नहीं थे या अनजान होने का नाटक कर रहे थे । क्योंकि विध्वंस के बाद भी भारत के पास वह पुरातात्विक विरासत है, जो हमारे शिल्पकारों की याद दिलाने के लिए पर्याप्त है । कहते है आवश्यकता आविष्कार की जननी है, यह बात सत्य है । लेकिन उससे भी बड़ा सत्य है अविष्कार को ध्यान में रखकर ही निर्माण की कल्पना की जाती है । और इस 88 टन भार उठाने वाली क्रेन के अविष्कार को देखते हुए ही इस मंदिर की कल्पना किसी महान शासक ने की थी ।

By MPNN

error: Content is protected !!