अनन्त माहेश्वरी की कलम से –
संत सिंगाजी महाराज निमाड़ के बड़े संत रहे। कहा जाता है कि सिंगाजी एक कवि व चमत्कारी संत थे। साढ़े चार सौ वर्ष पूर्व संवत 1616 में सावन सुदी नवमी को उन्होंने समाधि ली। मालवा-निमाड़ के संत सिंगाजी का जन्म खजूरी गांव में ग्वाला परिवार में हुआ था। सिंगाजी के जन्म और समाधिस्थ के बारे में विद्वानों के मत अलग-अलग है। कोई उनका जन्म 1574 में बताता है तो कोई 1576 में।
सिंगाजी के पिता भीमाजी गवली और माता गवराबाई की तीन सन्तान थीं। बड़े भाई लिम्बाजी और बहन का नाम किसनाबाई था। सिंगाजी का जसोदाबाई के साथ विवाह हुआ था। इनके चार पुत्र–कालू, भोलू, सदू और दीप थे।
सिंगाजी बचपन से ही एकांत स्वभाव के थे। जब वन में जानवरों को चराने जाते तो वहां प्रकृति के बीच रमे रहते थे।सिंगाजी की प्रतिभा से प्रेरित होकर गाँव के जमींदार ने उन्हें अपना सरदार नियुक्त कर दिया था। सिंगाजी ने बारह साल जमींदार की सेवा की । कुछ स्रोतों के अनुसार उन्होंने भामागढ़ के राजा के पत्रवाहक का कार्य भी किया था। बाद में अध्यात्म से जुड़े और काम छोड़ दिया। चरवाहे के रूप में उनकी ख्याति बढ़ी। परंतु कालांतर में उन्होंने संन्यास ले लिया व तपस्वी बन गए। 40 वर्ष की आयु में उन्होंने समाधि ले ली .
उनके निमाड़ी में लिखे सरल भजन आज भी प्रसिद्ध है।संत सिंगाजी को निमाड़ का कबीर भी कहा जाता है। आज भी निमाड़ में उनके जन्म स्थान व समाधि स्थल पर उनके पदचिह्नों की पूजा अर्चना की जाती है। उनके चमत्कार आज भी लोग महसूस करते हैं। कार्तिक पूर्णिमा पर यहाँ मेले में लाखों लोग आते है। घी शक्कर चढ़ाने की परंपरा के साथ यहाँ बड़ा पशु मेला लगता था ।पशुपालक उन्हें पशु दूध और घी अर्पण करते हैं। यहाँ घी की अखंड ज्योत 450 वर्ष प्रज्वलित है। समाधि के चारों तरफ नर्मदा मैय्या होने से यह स्थान धार्मिक महत्व के साथ ही दर्शनीय एवं पर्यटन का उभरता केन्द्र बन गया है। इंदिरा सागर बांध के बैक वाटर की वजह से डूब में आ रही समाधि के आसपास कृत्रिम टापू निर्मित कर परकोटा बनाया गया . जहाँ आज भी संत सिंगाजी की समाधि सुरक्षित है . समूचे मध्य प्रदेश में अनेकों स्थानों पर सिंगाजी के डेरे व समाधियाँ बनी हुयी हैं जहां पर मेलों का आयोजन भी किया जाता है। कवि संत सिंगाजी के आध्यात्मिक गीत आज तक गाए जाते हैं।