महाबलेश्वर से शुभम गुरूव की रिपोर्ट –
महाराष्ट्र के सतारा जिले में एक छोटा सा शहर है . जहां प्रकृति की गोद मे बसा है महादेव का धाम। दूर दूर तक फैली हरियाली और मन को शांति देने वाला, भोले का महाबलेश्वर धाम।सह्याद्री पर्वत शृंखला पर्वत पर बसा बेहद खूबसूरत हिल स्टेशन है, महाबलेश्वर । जो मुंबई से 237 किलोमीटर और पुणे से लगभग 120 किलोमीटर की दूरी पर बसा हुआ है। कुदरत ने महाबलेश्वर को पानी पहाड़ हरियाली और बादल सब कुछ दिया है । प्रकृति की सभी अनमोल धरोहरों को समेटकर बेपनाह खूबसूरती दी है ।
आम लोगों के बीच महाबलेश्वर जितना अपनी खूबसूरती और प्राकृतिक धरोहर के लिए जाना जाता है उतना ही इसका धार्मिक महत्व भी है। महाबलेश्वर से 6 किलोमीटर दूरी पर एक स्वयंभू शिवलिंग है. जिसका इतिहास हजारों साल पुराना है. जिसे दुनिया भर में महाबलेश्वर शिवलिंग के नाम से जाना जाता है. यहाँ भक्तों का तांता लगा रहता है कोई महाबलेश्वर की खूबसूरती से आकर्षित होकर यहां आता है कोई साक्षात भोलेनाथ के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त करने की चाह लेकर यहां आता है
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रावण , महादेव का अनन्य भक्त था . जिसने अपनी कठोर तपस्या से भोले को प्रसन्न कर उनसे लिंग रूप में लंका ले जाने का वरदान मांगा था. कहते हैं जब रावण शिवलिंग को लेकर सहयाद्री पर्वत के ऊपर से चला , तो लिंग से पानी की कुछ बूंदे नीचे गिर गई . जिससे अति बल और महाबल नामक दो राक्षसों का जन्म हुआ. उन्होंने चारों ओर आतंक मचा दिया . ऋषि-मुनियों पर अत्याचार करने लगे. परेशान ब्राह्मण ब्रह्मा जी को साथ लेकर , भगवान विष्णु के पास पहुंचे . भगवान विष्णु ने अति बल का वध कर दिया. लेकिन महाबल का वध करने में असफल रहे. समस्या का कोई समाधान ना निकलता देख देव, महादेव के पास पहुंचे .जिनकी गुहार पर भोले शंकर ने यहां महाबल का वध किया,और इस तरह भोले भंडारी यहां महाबलेश्वर कहलाये .
महाबलेश्वर का पहला ऐतिहासिक उल्लेख वर्ष 1215 से मिलता है जब देवगिरि के राजा सिंघान ने पुराने महाबलेश्वर का दौरा किया था। उन्होंने कृष्णा नदी के स्रोत पर एक छोटा मंदिर और पानी की टंकी का निर्माण किया। 1350 के आसपास, एक ब्राह्मण वंश ने इस क्षेत्र पर शासन किया। 16 वीं शताब्दी के मध्य में चंदाराव मोरे मराठा परिवार ने ब्राह्मण वंश को हराया और जावली और महाबलेश्वर के शासक बने, जिस अवधि के दौरान पुराने महाबलेश्वर के मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया था। सत्रहवीं शताब्दी में शिवाजी ने इस मंदिर का न केवल जीर्णोद्धार करवाया बल्कि यहीं पर अपनी माता जीजाबाई का तुलादान भी करवाया था
रुद्राक्ष का रूप माना जाने वाला महाबलेश्वर का शिवलिंग स्वयंभू है . कहते हैं सह्याद्री पर्वत श्रृंखलाएं लाखों साल पुरानी है और उतना ही पुराना है इस मंदिर का इतिहास. जहां भगवान भोलेनाथ ने अपने लिंग रूप को प्रकट कर ब्रह्मा और विष्णु के अहंकार को नष्ट किया था . कहते हैं महाबलेश्वर ही वह स्थान है जहां सृष्टि के संहारक शिव ने काल भैरव को प्रकट किया और यही परमपिता ब्रह्मा के छठे सिर को भैरव ने उनके धड़ से अलग कर दिया था .
जिसके बाद महादेव ने काल भैरव को द्वारपाल नियुक्त कर दिया . तभी से यह परंपरा चली आ रही है कि भोले नाथ के दर्शनों को आने वाले भक्त , पहले भैरव की आज्ञा लेते हैं . उसके बाद ही भोलेनाथ के दर्शनों के लिए आगे बढ़ते हैं . इस मंदिर में आज भी केवड़े का फूल नहीं चढ़ाया जाता है .
महाबलेश्वर मंदिर हिंदू देवता शिव की पूजा के लिए समर्पित है और इसका निर्माण ‘चंदा राव मोरे’ वंश द्वारा किया गया था। मंदिर के भीतरी भाग में भगवान शिव की मूर्ति के साथ गर्भगृह है। इस मंदिर का सबसे बड़ा आकर्षण शिव लिंगम है जो 6 फीट लंबा है। महाबलेश्वर मंदिर मराठा विरासत का उत्कृष्ट उदाहरण है जो आज भी कई सौ सालों के बाद भी गर्व से खड़ा है। इस मंदिर का निर्माण 16 वीं शताब्दी के समय का है जो हेमाडंत स्थापत्य शैली की वास्तुकला प्रदर्शित करता है। मंदिर के अंदर अनादी काल से स्वयंभू लिंगम हैं जिन्हें महालिंगम कहा जाता है। यह शिवलिंग रुद्राक्ष के आकार में है । मंदिर में पुराना त्रिशूल, रुद्राक्ष, डमरू भी हैं। भगवान शिव को समर्पित इस आकर्षक मंदिर में नंदी और उनके अंगरक्षक काल भैरव की कई नक्काशी भी है। पंडित श्याम भाँडोलकर ने जानकारी देते हुए बताया कि मंदिर में विराजित स्वयंभू शिवलिंग रुद्राक्ष के रूप में है। ब्रह्मा, विष्णु , महेश तीनो देवता का वास इस शिवलिंग में है। यह जलरूप धारी शिवलिंग है। इसमें पांच नदियां भगवान की जटा से निकली हैं ।कृष्णा, वेदना, कोयना,सावित्री और गायत्री का जल इस शिवलिंग से सतत बहता रहता है।इस शिवलिंग की पहली पूजा पांडवो के गुरु धौम्य ऋषि ने की थी .इस मंदिर में विराजित नंदी की मांग टेड़ी है। जिससे भी कथा जुड़ी हुई है। यहां भगवान शिव का दर्शन नंदी के सींग के बीच से होने की बजाय नंदी की आंख से होता है।इस मंदिर में काल भैरव का स्वयम्भू लिंग है। जिसके पास उनकी मूर्ति भी है।
यहां आप भगवान की सुख सैया के भी दर्शन कर सकते है।इस मंदिर में शयन आरती पश्चात भगवान के लिए शयन सैया सजाई जाती है। सुबह मन्दिर खोलते ही ऐसा प्रतीत होता है कि सुख शैया पर भगवान शिव ने शयन किया हो।मंदिर में जो पांच फनी नाग की प्रतिमा है। उसे जावली के राजा चंदाराव मोरे ने भेंट किया था।इस मंदिर में जो घण्टा है। उसकी ध्वनि बाईस किलोमीटर दूर तक सुनाई देती है। यह घंटा बाजीराव पेशवे के बडे भाई चिमाजी अप्पा पेशवा ने भेंट किया . इस मंदिर में लगा कलश शिवाजी महाराज ने भेंट किया था। छत्रपती शिवाजी महाराज की मॉ जिजामाता की सुवर्णतुला यही की गयी थी .
महाबलेश्वर मंदिर परिसर में ही पंचगंगा मंदिर है .पुराने महाबलेश्वर में पंचगंगा मंदिर को 4,500 साल पुराना बताया जाता है। पंचगंगा मंदिर का जीर्णोद्धार 16वीं और 17वीं शताब्दी के दौरान “चंदा राव मोरे” और छत्रपति शिवाजी के नेतृत्व में किया था । मान्यता है कि यह 7 नदियों का उद्गम स्थल है . जिसमें पांच नदियों का संगम 2 साल के बाद होता है और कृष्णा भागीरथी का संगम 12 साल में एक बार. जब महाकुंभ का आयोजन होता है तब यहां आकर मिलती है. वहीं दूसरी नदी सरस्वती का संगम साहठ साल में एक बार देखने को मिलता है. मंदिर में एक गाय के मुख से पांच नदियों का जल कुंड में गिरता है जिसमें स्पर्श मात्र से भक्तों के तमाम कष्ट दूर हो जाते हैं . पंचगंगा मंदिर के पास मौजूद कृष्ण मंदिर जो स्थानीय लोगों के बीच बेहद प्रसिद्ध है और महाबलेश्वर मंदिर में आने वाला भक्त , कुंड के जल को स्पर्श करने के साथ-साथ भगवान कृष्ण का आशीर्वाद लेना नहीं भूलता है.