सांदीपनि आश्रम में है ग्यारह सौ वर्ष पुराने भगवान कुबेर
दर्शन मात्र से होती है धन की प्राप्ति भर जाते हैं भंडार
देश के तीन धन कुबेर मंदिरो में से एक कुबेर की प्रतिमा उज्जैन के सांदीपनि आश्रम में विराजित है मान्यता है की कुबेर की प्रतिमा के दर्शन मात्र से ही धन वैभव और समृद्धि की प्राप्ति होती है। धन तेरस पर धन कुबेर की प्रतिमा का विशेष पूजन होता जिनके दर्शन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु उज्जैन पहुंचते है। कुबेर की प्रतिमा कब स्थापित की गई कोई नहीं जानता है लेकिन सांदीपनि आश्रम में विराजित इस प्रतिमा की कहानी भगवान श्री कृष्ण से जुडी हुई जरूर बताई गई है।
मंदिर के पुजारी शिवांश व्यास ने बताया की उज्जैन में विराजित बेसाल्ट से बनी कुबेर की प्रतिमा शुंग काल की है करीब 3.5 फ़ीट की इस प्रतिमा के चार हाथ है जिसमें दो हाथो में धन सहित एक हाथ में सोम पात्र एक आशीर्वाद की मुद्रा है। कुबेर भगवान की प्रतिमा देश भर में सिर्फ तीन जगह विराजित है। उत्तर और दक्षिण के साथ मध्य में उज्जैन में विराजित है , यह प्रतिमा श्री कुण्डेश्वर महादेव मंदिर के साथ भगवान् श्री कृष्ण , बलराम और सुदामा के साथ स्थापित की गई थी। ख़ास बात मंदिर के द्वार पर खड़े नंदी की अद्भुत प्रतिमा भी है। अनादि काल पहले प्रतिमा को स्थापित किया गया। मान्यता है की इनके दर्शन मात्र से धन की प्राप्ति होती है। धन के आधिपति कुबेर के दर्शन के लिए श्रद्धालु धन तेरस पर दर्शन कर सुख समृद्धि की प्राथना करते है। इस दिन दो बार विशेष आरती की जाएगी। साथ ही सूखे मेवा ,इत्र ,मिष्ठान ,और फल का भोग लोग लगाया जाएगा।
22 अक्टूबर शनिवार को धन तेरस पर धन के रक्षक कुबेर का पूजन होगा। तीखी नाक, उभरा पेट, शरीर पर अलंकार आदि से कुबेर का स्वरूप आकर्षक है। पुरावेत्ताओं के अनुसार यह प्रतिमा मध्य कालीन 800 से 1100 वर्ष पुरानी है। जिसे शंगु काल के उच्च कोटि के शिल्पकारों ने बनाया था। कुबेर के पूजन के लिए धन तेरस पर यहाँ श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।
मंदिर के पुजारी शिवांश व्यास के अनुसार यह प्रतिमा 84 महादेव में से 40वें क्रम पर श्री कुण्डेश्वर महादेव मंदिर के गर्भगृह में विराजित है। मान्यता है कि भगवान कृष्ण जब महर्षि सान्दीपनि के आश्रम से शिक्षा पूरी कर जाने लगे तो गुरू दक्षिणा देने के लिए कुबेर धन लेकर आए थे, लेकिन गुरू-माता ने कृष्ण से कहा कि मेरे पुत्र का शंखासुर नामक राक्षस ने हरण कर लिए है। उसे मुक्त कराकर ला दो। यही गुरू दक्षिणा होगी। कृष्ण ने गुरू पुत्र को राक्षस से मुक्त कराकर गुरू-माता को सौंप दिया। इसी पर प्रसन्न होकर गुरू-माता ने कृष्ण को ‘श्री सौंपी। तभी से कृष्ण के नाम के साथ श्री जुड़ गया। वे श्रीकृष्ण कहलाए। इसके बाद श्रीकृष्ण तो द्वारका चले गए, लेकिन कुबेर आश्रम में ही बैठे रह गए। यहाँ कुबेर की प्रतिमा बैठी मुद्रा में है। कुण्डेश्वर महादेव के जिस मंदिर में कुबेर विराजे हैं, उसके गुम्बद में श्री यंत्र बना हुआ है जो कृष्ण को श्री मिलने की पुष्टि करता है। मान्यता है कि यहाँ कुबेर की नाभी में इत्र लगाने से समृद्धि प्राप्त होती है। इसलिए यहां दीपावली पर्व के पहले कुबेर देव की प्रतिमा के दर्शन और नाभी में इत्र लगाने के लिए श्रद्धालु पहुंचते है।

By MPNN

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