ओंकारेश्वर से राकेश पुरोहित की रिपोर्ट –

मध्य प्रदेश में कुबेर का पहला मंदिर मंदसौर में दूसरा उज्जैन के सांदीपनि आश्रम में तो तीसरा मंदिर खंडवा जिले के ओंकारेश्वर तीर्थ नगरी में स्थित है, वहीं देश में अल्मोड़ा उत्तराखंड,पुणे महाराष्ट्र, रत्न मंगलम चेन्नई ,करनाली बड़ौदा में  भी कुबेर के मंदिर है। ये सभी मंदिर देश के तीर्थ स्थानों में अपना स्थान रखते हैं।

खंडवा जिले के ओंकारेश्वर में कुबेर का मंदिर है . धार्मिक मान्यता है की मंदिर में विराजित धन के देवता मात्र दर्शन करने से खुश हो जाते हैं . यहाँ दीपावली पर्व पर धनतेरस के एक दिन पूर्व बारस की रात को ज्वार चढ़ाये जाने का विशेष महत्व है . मान्यता के अनुसार इस मंदिर में धनतेरस के दिन दर्शन करने मात्र से धन की देवी लक्ष्मी की कृपा होती है.
तीर्थ नगरी ओंकारेश्वर में नर्मदा नदी और कावेरी नदी के संगम पर कुबेर भंडारी का प्राचीन मंदिर स्थित था , जहां शिव भक्त कुबेर ने तपस्या कर शिवलिंग की स्थापना की थी। अब यह मंदिर ओंकारेश्वर बांध के बैक वाटर में जलमग्न हो चुका है . पुराने मंदिर के नाम पर शासन ने एक ट्रस्ट बनाकर ओंकार प्रसादालय के पास कुबेर भंडारी का नवीन मंदिर स्थापित कर दिया, कुबेर भंडारी के नवीन मंदिर में दीपावली के समय भक्तों की भीड़ लगती है। धनतेरस पर यहाँ विभिन्न धार्मिक आयोजन किये जाते है . धनतेरस पर इस मंदिर पर रात्रि जागरण होता है. धनतेरस की सुबह अभिषेक पूजन पश्चात कुबेर महालक्ष्मी का महायज्ञ किया जाता है . ओंकारेश्वर में नर्मदा नदी के तट पर कुबेर महालक्ष्मी का महायज्ञ होना विशेष फलदायी माना जाता है. महायज्ञ पश्चात लक्ष्मी वृद्धि पैकेट जिसे सिद्धि कहा जाता है का वितरण होता है, जिसे घर पर ले जाकर दीपावली की अमावस को विधि अनुसार धन रखने की जगह पर रखना होता हैं, जिससे घर में प्रचुर धन के साथ सुख शांति आती हैं I इस अवसर पर हजारों भक्त दूर दूर से आते है व कुबेर का भंडार प्राप्त कर प्रचुर धन के साथ सुख शांति पाते हैं I
ओम्कारेश्वर के कुबेर भंडारी मन्दिर से कथा भी जुड़ी हुई है . जिसके अनुसार भगवान शिव ने कुबेर को देवताओं का धनपति बनाया था।  वैसे तो कुबेर को शिवभक्त और धन के स्वामी के साथ ही संसार का रक्षक कहा जाता हैं, कुबेर के स्नान के लिए ही शिवजी ने अपनी जटा के बाल से कावेरी नदी उत्पन्न की थी। यह नदी ओमकार पर्वत का चक्कर लगाते हुए संगम पर वापस नर्मदा नदी से मिलती हैं, जिसे नर्मदा कावेरी का संगम कहा जाता है।  यही कावेरी नदी कुबेर मंदिर के बाजू से बहकर नर्मदा नदी में मिलती थी .
कुबेर लंकापति रावण के सौतेले भाई थे . जो रावण की तरह शिवभक्त थे, जिन्होंने भगवान शिव की उपासना की , जिससे प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उन्हें धनेश होने का आशीर्वाद दे दिया था,  कुबेर के ही पास पुष्पक विमान था, जिसकी विशेषता यह थी कि चाहे जितने लोग बैठे एक सीट हमेशा खाली रहती है। लेकिन रावण ने उसे कुबेर से छीन लिया था। हालांकि रावण के मरने के बाद यह विमान कुबेर को वापस मिल गया । इसलिए इनकी पूजा करने से धन संपदा की कमी नहीं होती है।

ओंकारेश्वर की इन्हीं पौराणिक मान्यताओं के चलते तीर्थनगरी की महत्ता काफी बढ़ जाती है। इन्ही मान्यताओं में से एक कुबेर भंडारी का मंदिर भी है। इसलिए तो इस मंदिर की महत्ता काफी बढ़ जाती है। । ऐसे में लोग इस मंदिर में दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता है। जब ओंकारेश्वर में श्रद्धालु आते हैं तो वहां एक बार दर्शन करने के लिए जरूर पहुंचते हैं

By MPNN

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