राकेश पुरोहित की रिपोर्ट –
वर्ष 2022 का अंतिम सूर्य ग्रहण 25 अक्टूबर मंगलवार दोपहर 2 बजकर 29 मिनट से आरंभ होगा और शाम 6 बजकर 32 मिनट पर समाप्त होगा.भारत में यह सूर्य ग्रहण शाम 4 बजकर 28 मिनट से दिखाई देगा.इस सूर्य ग्रहण की अवधि लगभग 4 घंटे 3 मिनट तक रहेगी। ओंकारेश्वर के पंडित अशोक दुबे के अनुसार सूर्य ग्रहण का सूतक काल ग्रहण शुरू होने के 12 घंटे पहले शुरू हो जाता है.चूंकि भारत में सूर्य ग्रहण अपराह्न 4 बजे के बाद दिखाई देगा. इसलिए भारत में इसका सूतक मंगलवार सुबह 4 बजे से मान्य होगा. अन्य देशों में यह ग्रहण दोपहर 02 बजकर 29 मिनट से शुरू होकर शाम 06 बजकर 32 मिनट तक रहेगा. हमारे देश में इसका समय 4:28 से शाम 6:32 तक रहेगा।
ग्रहण का समय काल, सूतक काल भारत के विभिन्न स्थानों में ग्रहण का समय
(स्थान) (समय-शाम)
अहमदाबाद- 04:38 से 06:06 तक
नई दिल्ली- 04:28 से 05:42 तक
सूरत – 04:43 से 06:07 तक
मुम्बई- 04:49 से 06:09 तक
पुणे- 04:51 से 06:06 तक
नागपुर- 04:49 से 05:42 तक
नाशिक- 04:47 से 06:04 तक
गुवाहाटी- — —
जोधपुर – 04:30 से 06:01 तक
लखनऊ- 04:36 से 05:29 तक
भोपाल- 04:42 से 05:47 तक
रायपुर- 04:50 से 05:32 तक
चंडीगढ़- 04:23 से 05:41 तक
रांची – 04:48 से 05:15 तक
पटना- 04:42 से 05:14 तक
कोलकाता- 04:41 से 05:04 तक
भुवनेश्वर- 04:56 से 05:16 तक
चेन्नई- 05:13 से 05:45 तक
बेंगलुरु- 05:12 से 05:56 तक
हैदराबाद- 04:58 से 05:48 तक
जम्मू- 04:17 से 05:47 तक
ग्रहण में क्या करें, क्या न करें ? तथा ग्रहण में क्या करें- क्या नही सम्पूर्ण जानकारी :
चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण के समय संयम रखकर जप-ध्यान करने से कई गुना फल होता है। श्रेष्ठ साधक उस समय उपवास पूर्वक ब्राह्मी घृत का स्पर्श करके ”ॐ नमो नारायणाय” मंत्र का आठ हजार जप करने के पश्चात ग्रहण शुद्धि होने पर उस घृत को पी ले। ऐसा करने से वह मेधा (धारण शक्ति), कवित्वशक्ति तथा वाक् सिद्धि प्राप्त कर लेता है।
सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण के समय भोजन करने वाला मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक ‘अरुन्तुद’ नरक में वास करता है।
सूर्यग्रहण में ग्रहण चार प्रहर (12 घंटे) पूर्व और चन्द्र ग्रहण में तीन प्रहर (9) घंटे पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए। बूढ़े, बालक और रोगी डेढ़ प्रहर (साढ़े चार घंटे) पूर्व तक खा सकते हैं।
ग्रहण-वेध के पहले जिन पदार्थों में कुश या तुलसी की पत्तियाँ डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं होते। पके हुए अन्न का त्याग करके उसे गाय, कुत्ते को डालकर नया भोजन बनाना चाहिए।
ग्रहण वेध के प्रारम्भ में तिल या कुश मिश्रित जल का उपयोग भी अति आवश्यक परिस्थिति में ही करना चाहिए और ग्रहण शुरू होने से अंत तक अन्न या जल नहीं लेना चाहिए।
ग्रहण के स्पर्श के समय स्नान, मध्य के समय होम, देव-पूजन और श्राद्ध तथा अंत में सचैल (वस्त्र सहित) स्नान करना चाहिए। स्त्रियां सिर धोये बिना भी स्नान कर सकती हैं।
ग्रहण पूरा होने पर सूर्य या चन्द्र, जिसका ग्रहण हो उसका शुद्ध बिम्ब देखकर भोजन करना चाहिए।
ग्रहण काल में स्पर्श किये हुए वस्त्र आदि की शुद्धि हेतु बाद में उसे धो देना चाहिए तथा स्वयं भी वस्त्र सहित स्नान करना चाहिए।
ग्रहण के स्नान में कोई मंत्र नहीं बोलना चाहिए। ग्रहण के स्नान में गरम जल की अपेक्षा ठंडा जल, ठंडे जल में भी दूसरे के हाथ से निकाले हुए जल की अपेक्षा अपने हाथ से निकाला हुआ, निकाले हुए की अपेक्षा जमीन में भरा हुआ, भरे हुए की अपेक्षा बहता हुआ, (साधारण) बहते हुए की अपेक्षा सरोवर का, सरोवर की अपेक्षा नदी का, अन्य नदियों की अपेक्षा गंगा का और गंगा की अपेक्षा भी समुद्र का जल पवित्र माना जाता है।
ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जरूरतमंदों को वस्त्र दान से अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है।
ग्रहण के दिन पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूल नहीं तोड़ने चाहिए। बाल तथा वस्त्र नहीं निचोड़ने चाहिए व दंतधावन नहीं करना चाहिए। ग्रहण के समय ताला खोलना, सोना, मल-मूत्र का त्याग, मैथुन और भोजन – ये सब कार्य वर्जित हैं।
ग्रहण के समय कोई भी शुभ व नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए।
ग्रहण के समय सोने से रोगी, लघुशंका करने से दरिद्रता, मल त्यागने से कीड़ा, स्त्री प्रसंग करने से सूअर और उबटन लगाने से व्यक्ति कोढ़ी होता है। गर्भवती महिला को ग्रहण के समय विशेष सावधान रहना चाहिए।
तीन दिन या एक दिन उपवास करके स्नान दानादि का ग्रहण में महाफल है, किन्तु संतानयुक्त गृहस्थ को ग्रहण और संक्रांति के दिन उपवास नहीं करना चाहिए।
ग्रहण के समय गुरु मंत्र, इष्ट मंत्र अथवा भगवन्नाम-जप अवश्य करें, न करने से मंत्र को मलिनता प्राप्त होती है।
ग्रहण के अवसर पर दूसरे का अन्न खाने से बारह वर्षों का एकत्र किया हुआ सब पुण्य नष्ट हो जाता है। (स्कन्द पुराण)
भूकंप एवं ग्रहण के अवसर पर पृथ्वी को खोदना नहीं चाहिए। (देवी भागवत)
अस्त के समय सूर्य और चन्द्रमा को रोग भय के कारण नहीं देखना चाहिए।