मनीष जैन की कलम से –
।। जय श्री दादाजी की ।।
साल 1930 दिसंबर का महीना…शुरूआती दिनों की बात। श्री श्री 1008 श्री दादाजी धूनीवाले अर्थात श्री केशवानंद जी महाराज ने खण्डवा की माटी को धन्य किया।
बताते है तब दादाजी के साथ उनके उत्तराधिकारी याने श्री हरिहर भोले भगवान छोटे दादाजी महाराज भी साथ थे। दादाजी सदा रथ में सवार होते थे और रथ भक्त ही खींचकर ले जाते थे। दादाजी ने खण्डवा में सिर्फ तीन दिन प्रवास किया। वे यहां से कूच करने वाले थे कि सेठानी पार्वती बाई की बहन जो दादाजी महाराज से साई खेड़ा से जुड़ी थी, वो आ गई और उन्होंने दादाजी के चरणों में निवेदन किया कि वह भंडारा करना चाहती है। बताते है दादाजी यहां से काशी जाना चाहते थे मगर नौजाबई के बहुत आग्रह पर खण्डवा ही रुक गए।
उन्होंने कहा कि जिद मत कर मोड़ी, जा… कड़ाव चड़ा दे। बस….। दादाजी उसके बाद तख्त पर ही लेट गए। इधर भक्त कीर्तन करते रहे। भंडारा चलता रहा। भक्त आते रहे। फिर क्या हुआ ? जानिये अगले अंक में ….क्रमश:
मनीष जैन, दादाजी के चरणों में सादर समर्पित
लेखक परिचय – मनीष जैन, मार्केटिंग, पत्रकारिता और सामाजिक सरोकार से जुड़े विषयो पर त्वरित टिप्पणीकार।
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