मनीष जैन की कलम से –
।। जय श्री दादाजी की ।।
श्री दादाजी धूनीवाले अवधूत संत थे। उनकी लीलाएं अलौकिक थी। वे मान अपमान, यश कीर्ति, वैभव, जय पराजय से परे थे। दादाजी महाराज कई कई दिन तक सोते भी नहीं, कई बार विश्राम को लेटे तो उठते भी नहीं।
भक्त उनके इर्द गिर्द दादा नाम कीर्तन में लगे थे। इसी बीच एक साधु कोतवाली पहुंचा, उसने कहा कि वहां लोग भीड़ लगाए बैठे है, उत्सव मना रहे है जबकि दादाजी का महानिर्वाण हो चुका है। जाओ देखो…। पुलिस पहुंची और उन्होंने वहा सेवा में खड़े भक्तो व छोटे दादाजी को पूरा मामला बताते हुए कहा कि हमें दादाजी के स्वास्थ्य की चिंता है, जरा आप निश्चिंत हो लेे। उस साधु की बात, पुलिस के आग्रह पर दादाजी के मुख से कम्बल हटाया गया तो मालूम पड़ा कि दादाजी तो चीर निंद्रा में लीन हो चुके है। तेज मुख श्याम वर्ण हो चुका है। उत्सव थम गया, खण्डवा में दादाजी धूनीवाले की इहलीला समाप्त होने की खबर आग की तरह संत समाज में फैल गई।
अगहन सुदी त्रियोदशी का दिन था वो। छोटे दादाजी महाराज ने तत्काल उस जमीन की रजिस्ट्री कारवाई और वहा अंतिम संस्कार करने की तैयारी की।
सवाल यह था कि वह साधु कौन था जो कोतवाली पहुंचा ?दादाजी अन्तर्यामी थे। वे अपनी इच्छा से समाधि लेते और फिर प्रगट हो जाते थे। खण्डवा से पहले उन्होंने ऐसा तीन चार बार किया। ऐसे चमत्कारों की चर्चा पढिये अगले अंक में ….क्रमश:
मनीष जैन, दादाजी के चरणों में सादर समर्पित
लेखक परिचय – मनीष जैन, मार्केटिंग, पत्रकारिता और सामाजिक सरोकार से जुड़े विषयो पर त्वरित टिप्पणीकार।
मनीष जैन, जैन चौक रामगंज खण्डवा [मध्यप्रदेश]
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