मनीष जैन की कलम से -।। जय श्री दादाजी की ।।
श्री दादाजी धूनीवाले भगवान शंकर के अवतार है। वे कभी कभी कहते थे …मै शंकर हूं। मै शंकर हूं। जब साई खेड़ा में दादाजी मालगुजार की टेकरी पर रहते थे तब जीजी बाई को उन्होंने शिव मंदिर में साक्षात भोले नाथ के रूप में दर्शन दिए है। दादाजी अकसर गुनगुनाते थे..हम काशी के वासी है, विश्वनाथ कैलाशी है। एक बार कुछ भक्त दादाजी के दर्शन उपरांत जाने की अनुमति मांगते हुए कहा कि भगवान हमें रामेश्वरम जाना है आज्ञा दीजिए। तो दादाजी बोले यही महादेव का आसन है।
अरे हा, पिछले अंक में बात हुई थी मरे व्यक्ति का डंडा मारकर जिंदा करन देने की। दादाजी ने महाकाल की नगरी में शव को जिंदा करके हड़कंप मचा दिया। उस दिन महाकाल की भस्म आरती के लिए चिता भस्म नहीं मिल सकी।।जब यह बात महाकाल के पंडो को मालूम हुई तो वे दादाजी के चरणो में निवेदन करने आए की आप तो सर्वज्ञ है। ऐसा मत कीजिए। तब दादाजी ने कहा कि आगे से ऐसा नहीं होगा। दादाजी महाराज की अलौकिक लीलाएं थी।
दादाजी ने कभी प्रवचन नहीं दिए। उनकी अटपटी वाणी में ही संसार का सार था। वे किसी धर्म, पंथ, पूजा पद्धति के हिमायती नहीं थे। सदा धूनी रमा कर बैठते थे। दादाजी के दर्शन को विलायती भक्त भी आते थे। वे बहुमूल्य उपहार तक धूनी में स्वाहा कर देते थे। उन्होंने कभी सांसारिक साम्राज्य कीं चाह नहीं रखी।
दादाजी ने भक्तो को सदा टिक्कड़ प्रसादी दी। अन्न ही ब्रह्म है। अन्न से बड़ा कोई दान नहीं। खण्डवा को धूनी का सानिध्य और भंडारों का सौभाग्य मिला। दादाजी भक्तो के जलपान की व्यवस्था खुद करते है। दादाजी कहते है जो मेरे काम पर तो मै उसके काम पर, और जो खुद के काम पर तो मै अपने काम पर
यही कारण है कि लाखो भक्त दादाजी की समाधि पर माथा टेक कर धन्य होते है। कहते है कि दादाजी की चर्चा करना भी सत्संग है। अगले अंक में हम चलेंगे होशंगाबाद…। भगवान की अलौकिक लीलाओं को देखने। साथ रहिएगा।फिर क्या हुआ ? जानिये अगले अंक में ….क्रमश:
लेखक परिचय – मनीष जैन, मार्केटिंग, पत्रकारिता और सामाजिक सरोकार से जुड़े विषयो पर त्वरित टिप्पणीकार।
जैन चौक रामगंज खण्डवा [मध्यप्रदेश]