मनीष जैन की कलम से -।। जय श्री दादाजी की ।।
दादाजी महाराज को बच्चो ने बताया कि उनका एक साथी रात को स्ट्रीट लाइट के नीचे बैठकर पढ़ाई कर रहा था मगर पुलिस ने उसे संदिग्ध मान कर हवालात में बन्द कर दिया। यह सुनकर दादाजी बहुत क्रोधित हुए।
उन्होंने उठाया डंडा और बहुत सारी स्ट्रीट लाइट फोड़ दी। मामला थाने तक पहुंचा । दरोगा ने उन्हें उसी लॉकअप में बन्द कर दिया जहा वो बच्चा भी था। वह पुलिस इंस्पेक्टर जैसे ही बाहर आया तो क्या देखता है कि दादाजी तो बाहर खड़े मुस्करा रहे है। वो भागा अंदर आया तो दादाजी लॉक अप में भी थे। वो बार बार अंदर बाहर दादाजी की लीला देख घबरा गया। उस समझते देर नहीं लगी कि ये तो कोई चमत्कारी संत है। वह दादाजी के चरणों में दंडवत हो गया। उसने दादाजी महाराज को नमन किया…। अपनी गलती मानी और उस बच्चे को भी छोड़ दिया। दादाजी कहते थे कि मै मारने वाले के साथ हू, मार खाने वाले के साथ नहीं अर्थात उन्होंने अन्याय के खिलाफ लडने की बात कहीं।
होशंगाबाद में ही एक बार की बात है दादाजी महाराज रेल के डिब्बे में जाकर बैठ गए। अपने दोनो हाथ की उंगलियों को आपस में बांध लिया। इधर ट्रेन रुक गई। ड्राइवर, गार्ड परेशान…। कोई गड़बड़ समझ ही नहीं पाया फिर क्या हुआ..? अब तो आप भी समझ गए होंगे। चलिए आगे की बात कल करेंगे, तब तक के लिए जय श्री दादाजी की।
दादाजी धूनीवाले की खण्डवा में जीवंत समाधि है। अर्थात हम यह मानकर सेवा, पूजन, अभिषेक, नैवेद्य अर्पित करते है कि दादाजी साक्षात विराजमान है। पंखा करना, भोग लगाना इत्यादि…कहने का मतलब दादाजी का सानिध्य हमें भरपूर है। भरोसा रखें, मानसिक अवसाद में दादाजी नाम जपे। सब अच्छा होगा। दादाजी की लीलाएं सब तक पहुंचाए।
लेखक परिचय – मनीष जैन, मार्केटिंग, पत्रकारिता और सामाजिक सरोकार से जुड़े विषयो पर त्वरित टिप्पणीकार।
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