मनीष कुमार मलानी – विद्रोही कवि –
मित्रों में शायद उस आखरी पीढ़ी से हूँ जो पीढ़ी किताबों के माध्यम से ही मल्टीपर्पस काम कर किया करती थी… एक जमाना था जब मोबाईल फोन का चलन आज की तरह नही था और प्रत्येक के पास मोबाईल नही होता था लेकिन उस समय भी जो प्रेम कहानियाँ हुआ करती थी और जिस प्रकार का जीवन था उस प्रसंग पर कुछ काव्य (“बोलती किताबें”) लिखने का प्रयास किया है..पढ़कर अर्थ समझ सको तो प्रतिक्रिया जरूर दीजियेगा…

📖बोलती किताबें📚

किताबें कुछ नही कहेती, किताबें जानती सब हैं…

किताबों की जो दुनिया थी, वो दुनिया भी निराली थी…
किताबों की ही दुनिया में, कहीं उलझी कहानी थी…

किताबों से ही बनती थी, बिगड़ती थी कहीं बातें…
किताबों से ही मिलती थी, मुलाकातों की सौगातें…

किताबों में कभी प्यारी, मोहब्बत के तराने थे…
किताबों से कभी मिलते, वो दो दिल जो कुँवारे थे…

किताबों के ही अंतस में, संदेशे प्यार वाले थे…
किताबों के ही पन्नो में, गुलाबों के ठिकाने थे…

किताबों से ही बनती थी, कहानी कामयाबी की…
किताबों में ही ढलती थी, जवानी जिंदगानी की…

किताबों का, किताबों से, किताबों में मिलन प्यारा…
जो बनता था किताबों से, वो जीवन था बढ़ा न्यारा…

किताबें कुछ नही कहेती, किताबें जानती सब हैं…

(रचनाकार – मनीष कुमार मलानी – विद्रोही कवि.)
खंडवा वाले

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