दौड़े दौड़े सब नेता अब आएंगे।
नेता आएंगे, आएंगे नेता आएंगे।
नेता आएंगे तो खाना -पीना लाएँगे।
नए नोट और दारू बोतल लाएंगे ।। १।
हम गरीबों के भाग अब खुल जाएंगे। नेता आएंगे ———-
फ्री खाना पीना सबको खिलाएंगे।
नगद नोट और बोतल दे जाएंगे।। २।
मना किया तो दुगना दे जाएंगे। .नेता आएंगे ————
वायदा कर दिया नौकरी लगाएंगे।
शादी बेटी की भी जल्दी कराएंगे।। ३।
नया घर, नई सड़क बनाएंगे। नेता आएंगे ————-
दूसरा आदमी तो चोर है बताएंगे।
हमने कहा है वो पूरा निभाएंगे।। ४।
नया रंग पांच साल में लाएंगे। नेता आएंगे ———–
रोड शो और रैली में भी जाएंगे।
पैसे,खाना पीना सब कुछ पाएंगे।।५।
मौज करो फिर ये हाथ नहीं आएंगे। नेता आएंगे ——-
गरीबी बेकारी भी अब मिट जाएगी।
हरियाली और खुशहाली भी आएगी।। ६ ।
इस धरती को स्वर्ग हम बनाएंगे। नेता आएंगे —
कवि ,साहित्यकार जे एस सलूजा, भिक्षु की कलम से-
निमाड़ की मिट्टी और मैं !
खण्डवा जिले के बीड़ गांव में पैदा होकर वहां के जनपद सभा स्कूल से प्राइमरी शिक्षा ली और फिर खंडवा में सुभाष हाई स्कूल से आठवीं करके गवर्नमेंट मल्टीपरपज़ स्कूल से मैट्रिक की १९५६ में। गांव और शहर में जो जो देखा, सुना और अनुभव किया और स्वर्गीय श्रद्धेय माखनलाल चतुर्वेदी के कर्मवीर और प्रभागचंद्र शर्मा जी के आगामीकल पत्रोँ के प्रभाव से मेरे अंदर सोया लेखक और कवि जाग गया। मैंने पढ़ाई के साथ-साथ कुछ लिखना शुरू किया ; लेख, कविता और व्यंग्य। खंडवा नगर में भयंकर सूखा पड़ा और लोग पानी की बूंद -बूंद को तरस रहे थे और तब मैंने लिखी, “बस एक घूंट भर पानी दो” और यह कविता स्कूल की मैगज़ीन में छापी गई। तुलसी जयंती जैसे उत्सवों में वाद-विवाद और कविता पाठ में भाग लेने में हमारे प्रिंसिपल श्रीमान चौबे जी के प्रोत्साहन से काफी सफलताएं मिलीं। २००२ में इसी स्कूल ने मुझे शताब्दी के सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी के सम्मान लिए पुरस्कृत किया।
जबलपुर में साइंस कॉलेज और फिर इंजीनियरिंग कॉलेज से १९६२ में डिग्री लेकर नौकरी की तलाश करनी थी लेकिन रीढ़ के आपरेशन कराने से करीब डेढ़ साल तक कोई नौकरी नहीं की। इस बीच कई खट्टे-मीठे अनुभव लेते हुए धीरे-धीरे जिंदगी आगे सरक रही थी। पर माँ-बाप, सगे-सम्बन्धियों और मित्रों के आशीर्वाद और सहयोग से आगे बढ़ते हुए स्टील अथॉरिटी में अच्छी तरक्की हुई और बाद में एस्सार स्टील जैसी कई कंपनियों में और भारत-रशिया सहयोग वाली कंपनी रोमेल्ट सेल में भी काम किया। समाज सेवा की भावना से मैं हरित क्रांति और एशियन यूनियन जैसी संस्थाओं से आज भी जुड़ा हूँ। करीब-करीब सारे विश्व का भ्रमण कर चुका हूँ और बहुत कुछ देखा, सुना और सीखा है। इस बीच में अब यही कोशिश है कि इन अनुभवों को समेटकर कुछ लिखा जाए; कविता ,लेख आदि। २००२ में दिल्ली सरकार ने हरित क्रांति के लिए मुझे पुरस्कृत किया
इन्हीं दिनों समाज में बुराइयां, धोखा-धड़ी, लालच, दंगे और न जाने कैसी-कैसी चीज़ें देखकर मेरा गांव-देहात वाला मन रो पड़ता है और कलम चलने लगती है। मेरा व्यंग्य “भोला भैया मंत्री बन गए ” और कविता “चुनाव आए और दीनू गाए ” कुछ ऐसी ही समस्याओं की तरफ इशारा करते हैं।
मैं कोशिश में हूँ कि क्लाइमेट चेंज पर जो सिर्फ़ भाषणबाजी, बड़ी-बड़ी मीटिंगें हो रही हैं, क्या इनसे कभी हालात सुधरेंगे ? जो हमें तुरंत करना चाहिए उस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा। मैं कोशिश कर रहा हूँ कि कुछ लिखा जाए।
राम आएंगे राम आएंगे, मेरी झोपड़ी के भाग आज खुल जाएंगे। ये भजन आजकल हर बच्चे, बूढ़े की जबान पर है। चुनाव आते देखकर दीनू भी ख़ुशी से नाचने लगा; अब तो १५ दिन तक मजे लूटने का वक्त आ गया है!
चुनाव आए और दीनू गाए ! (जे एस सलूजा, भिक्षु )