अनंत माहेश्वरी की रिपोर्ट-
सौ रूपये प्रतिदिन के हिसाब से दूसरे कर खेत मे मजदूरी कर रही तेईस वर्षीय गीता चौधरी को जब परिजनों ने आकर सूचना दी कि उसे ग्रामीणों ने आपसी सहमति से ग्राम पंचायत का सरपंच चुन लिया है। तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। राजनीति के दांव पेंच से अनजान गीता चौधरी ने कहा कि सरपंची करूंगी और उसके बाद समय मिला तो मजदूरी भी करूंगी।
मध्यप्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के लिए नाम निर्देशन पत्र जमा हो चुके है। चुनाव होना बाकी है। लेकिन उसके खण्डवा जिले की सिरपुर ग्राम पंचायत और ग्राम बावड़िया काजी के ग्रामीणों ने आपसी सहमति से अपना सरपंच चुन लिया।इस गांव से सरपंच पद हेतु एकमात्र फार्म गीता चौधरी का जमा किया गया। जिससे वह चुनाव पूर्व ही सरपंच बन गई।अपने सरपंच बनने की खबर से बेखबर गीता चौधरी दूसरे के खेत मे मजदूरी करने गई थी। जब उसे सरपंच बनाये जाने की सूचना मिली तो उसकी ख़ुशी का ठिकाना नही रहा। उसने कहा कि कभी सपने में भी नही सोचा था कि वह सरपंच बनेगी।
आदिवासी परिवार से ताल्लुक रखती गीता चौधरी का जन्म महाराष्ट्र के एक गांव में हुआ। सातवी तक पढ़ी गीता का विवाह खण्डवा जिले के ग्राम सिरपुर निवासी सतीश चौधरी के साथ हुआ। जिनके दो बच्चे है। इनका पूरा परिवार खेतिहर मजदूर है। जो अपनी बहू को ग्राम की सरपंची मिलने से खुश है। जिनका कहना है कि गांव वालों ने जो जिम्मेदारी दी है। उसका ईमानदारी से निर्वहन करते हुए गांव का विकास करेंगे।
खेतिहर मजदूर गीता चौधरी का निर्विरोध सरपंच बनना, भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती को दर्शाता है। यहां पता नहीं कब किसकी किस्मत बदल जाये, और वह रंक से राजा बन जाये।