अनन्त माहेश्वरी की रिपोर्ट –

एक ऐसा रहस्यमयी पहाड़,जिसे देखने देश विदेश से पर्यटक आते हैं। इन्हे दुनिया का आठवां आश्चर्य भी कहा जा सकता है । सात पहाड़ियों में लाखो की संख्या में खंबेनुमा पत्थर की रचनाये है ।ये पहाड़ ये चट्टानें या छड़ें दूर से लोहे की बनी दिखाई देती हैं, जो षटकोण, पंचकोण, चतुष्कोण तथा त्रिभुजाकार आकृतियों के पत्थरों से बने हुए है । विभिन्न आकृतियों के पत्थर मानव निर्मित प्रतीत होते है. इन्हें किसी छोटे पत्थर या धातु से बजाने पर इनमें से लोहे की रॉड से निकलने वाली जैसी आवाज सुनाई देती है। इसे कावड़िया पहाड़ कहते हैं। 

कावड़िया पहाड़ मध्यप्रदेश के इंदौर जिले से लगभग 75 किलोमीटर दूर देवास जिले के अंतर्गत बागली तहसील के उदयपुरा गांव के पास सीता वाटिका से लगभग 10 किमी उत्तर में वनप्रदेश के रास्ते पोटला गांव से 1 किमी की दूरी पर स्थित है। कावड़िया पहाड़ तराशे गए (अष्टभुजी करीब 30 फुट ऊँचाई) पत्थरों का स्वनिर्मित ऐसा पहाड़ है, जहाँ हजारों की तादाद में एक ही आकार के पत्थर जमे हुए हैं। यहां जमीन से 50-60 फीट ऊंची पत्थरों की लंबी-लंबी चट्टानें खड़ी हैं जो किसी बड़ी छड़ों के भूमि के गढ़े होने का आभास देती हैं। ये लगभग एक जैसी शेप और साइज में हैं। ऐसा लगता है जैसे इन्हें किसी फैक्टरी में बनाकर यहां लगा दिया गया हो या किसी वास्तुकार ने तराशा हो।

बेसाल्ट स्तंभों की कुल सात पर्वत जैसी संरचनाएं हैं .जिसमें स्तंभों के एक पैटर्न में व्यवस्थित होने से मानव निर्मित संरचना का आभास होता है। अधिकांश स्तंभ हेक्सागोनल हैं और सभी किनारों पर समान चट्टानों से जुड़े हुए हैं जो हिट होने पर संगीतमय ध्वनि का उत्सर्जन करते हैं। सबसे अधिक दिखाई देने वाले स्तंभ आठ से दस फीट लंबे हैं .लेकिन पहाड़ के अंदर और भी गहरी चट्टानें हो सकती हैं।  यहाँ सारे पत्थर एक ही आकार–प्रकार के होने के बाद भी उनकी अंदरूनी संरचना भिन्न है। सम्भवतः इसीलिए यहाँ के हर पत्थर को अन्य पत्थर या लोहे से ठोकने पर इनकी अलग–अलग ध्वनि आती है। यह ध्वनि संगीत के सात सुरों की तरह है। कहीं कहीं इनमें से घंटी के स्वर भी जैसी आवाज भी निकलती है। इसे लेकर कई पुरातत्ववेत्ताओं ने यहाँ शोध भी किया है। लेकिन अभी तक कोई बड़ी जानकारी सामने नहीं आ पाई है।

इन्हें लेकर यहाँ कई तरह की स्थानीय किंवदन्तियाँ भी हैं .हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार महाबली भीम के द्वारा नर्मदा नदी के प्रवाह की दिशा एक दिन में नापने संबधी वचन को पूर्ण करने के लिए इन प्रस्तर खम्भों का निर्माण किया था जो महाबली भीम पूर्ण नहीं कर पाए थे ।
स्थानीय निवासी बताते हैं– ‘यह स्थान बहुत दुर्लभ है। वैज्ञानिक के मुताबिक ज्वालामुखी की वजह से ऐसा हुआ है तो इसके विशद शोध की दरकार है ताकि इसकी प्राचीनता का पता लगाया जा सके। लोगों में किवदंती है कि भीम नर्मदा नदी से शादी करना चाहता था। नर्मदा ने भीम को चुनौती दी कि मैं तो प्रारम्भ से ही कुँआरी नदी हूँ। लेकिन यदि तुम एक ही रात में मुझे बाँध सके तो मुझे तुमसे शादी का प्रस्ताव मंजूर होगा। भीम ने नर्मदा नदी को बांधने के लिये ही इन पत्थरों को अपनी कावड़ में भरकर यहाँ लाया था। लेकिन सुबह हो जाने से ये पत्थर यहीं रखे रह गए और नर्मदा अब तक चिर कुँआरी नदी ही बनी रही। अब इस किवदन्ती में कितनी सच्चाई है, नहीं कह सकते। पर इलाके में लोग यही मानते हैं। इसीलिये इसे कावड़िया पहाड़ के नाम से पहचाना जाता है।

 इस पहाड़ को देखने के बाद आप इसे तराशे गए पत्थरों के पिल्लरों का ढेर ही कहेंगे । इसे कुछ लोग वंडर ऑफ नेचर कहते हैं .यह अपनी तरह की अनूठी भूवैज्ञानिक संरचना हैं। पूरी दुनिया में ऐसी आकृतियाँ केवल दक्षिण अफ्रीका और भारत में कर्नाटक,सेंट मैरी द्वीप सहित यहाँ मिलती है। दक्षिण अफ्रीका ने इन्हें पर्यटन और शोध की दृष्टि से काफी विकसित किया है। लेकिन हमारे यहाँ अब तक उपेक्षित ही रहे हैं। बताया जाता है कि किसी बड़े ज्वालामुखी के लावा शान्त होने से ऐसी आकृतियों के पत्थर बने हैं।

अनोखा अद्भुत स्थान है कावड़िया पहाड़.देवास जिले के बागली से पचास किलोमीटर, इंदौर से व्हाया मुहाड़ा घाट होकर बहत्तर किलोमीटर की दूरी तय कर यहाँ पहुंचा जा सकता है  

By MPNN

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