डेस्क रिपोर्ट –
मुस्लिम समुदाय के लोगों के आपसी विवाद सुलझाने के लिए कोई काजी एक मध्यस्थ की भूमिका तो निभा सकता है .लेकिन वह किसी मसले में अदालत की तरह आदेश पारित नहीं कर सकता साथ ही कोई अन्य समाज धर्म गुरु भी अदालत की तरह आदेश पारित नहीं कर सकता .
इंदौर हाईकोर्ट की इंदौर बेंच के जस्टिस विवेक रुसिया और जस्टिस राजेंद्र कुमार वर्मा ने उस व्यक्ति की जनहित याचिका पर सुनवाई की .जिसमें मुस्लिम समुदाय के दारुल-कजा छावनी के मुख्य काजी के एक आदेश को चुनौती दी थी.दरअसल इस याचिका में काजी पर आरोप लगाया गया था कि मुख्य काजी ने उसकी पत्नी की ‘खुला ’(किसी मुस्लिम महिला द्वारा अपने शौहर से तलाक मांगे जाने की इस्लामी प्रक्रिया) के लिए दायर अर्जी पर सुनवाई करते हुए तलाक का फरमान सुना दिया था. याचिका में काजी जो कि एक मध्यस्थ की भूमिका में होता है उसके द्वारा बंधनकारी सुनाए गए निर्णय को नियम विरुद्ध करार दिए जाने की फरियाद की थी . वही एडव्होकेट हरीश शर्मा के अनुसार इंदौर हाई कोर्ट की डबल बेंच ने इस पूरे मामले मे सुनवाई करते हुए अपने फैसले में माना कि अगर कोई काजी अपने समुदाय के लोगों के आपसी विवाद हल करने के लिए एक मध्यस्थ की भूमिका निभाता है वहां तक तो उसका अधिकार क्षेत्र विधि सम्मत है . किंतु वह किसी अदालत की तरह ऐसे विवादों में निर्णय नहीं कर सकता. वो अदालत की तरह आदेश नहीं जारी कर सकता. इंदौर हाई कोर्ट की युगलपीठ ने सर्वोच्च अदालत के दृष्टांतो का हवाला देते हुए अपने आदेश में कहा कि किसी काजी या किसी भी समाज के धर्म गुरुओ को ऐसे किसी आदेश सुनाने का अधिकार नहीं है।