अनंत माहेश्वरी की रिपोर्ट –

पिछले कुछ दिनों से सतपुड़ा जैविक प्रोड्यूसर कम्पनी की कार्यशैली पर सवाल उठाए जा रहे थे।इन्ही सवालों का जवाब जानने के लिए हमने खालवा ब्लाक के ग्राम जूनापानी और जिले के सीमांत गांव लखनपुर बंदी का दौरा किया।
जहां सतपुड़ा जैविक प्रोड्यूसर कम्पनी के सहयोग से जैविक खाद बनाने में जुटे किसानों से चर्चा की।

किसानों ने बताया कि उन्होंने नाबार्ड से प्रेरणा पाकर म०प्र० ग्रामीण बैंक से पच्चीस हजार, पच्चीस हजार रुपयों का ऋण लिया है। जो जैविक खाद के उत्पादन की लागत एवम निर्माण के रुप में काम आ रहा है।सतपुड़ा जैविक प्रोड्यूसर कंपनी के उत्पादक सदस्य बने किसानों ने अब तक सौ उत्पादक इकाई बना ली है । जो कंपनी से प्रशिक्षण प्राप्त कर जैविक खाद उत्पादन में आत्मनिर्भर बन रहे हैं। सदस्य किसानों द्वारा खरीफ फसलों के लिए स्वयं का जैविक खाद तैयार किया है। यह खाद बहुत कम समय में तैयार हो जाती है। इसमें केंचुए नीचे की मिट्टी को ऊपर लाकर उसे उत्तम प्रकार की बनाते हैं।आदिवासी किसान गोबर खाद को वेल्युएडिशन करके स्वयं के लिए खाद बना रहे हैं और उत्पादित खाद को सतपुड़ा जैविक प्रोडूसर कंपनी के माध्यम से अन्य किसानों को विक्रय कर लाभ कमाने की कार्ययोजना पर कार्य कर रहे हैं।

आदिवासी विकास खंड खालवा ब्लाक के ग्राम जुनापानी निवासी किसान टीनू पाटील ने बताया की सतपुड़ा जैविक प्रोड्यूसर कंपनी ने हमे जैविक खाद बनाना सिखाया , बैंक से ऋण भी दिलाया. हमारे गाँव के बीस किसान जुड़े हुए है , जो जैविक खाद बना रहे है . इससे हमे रासायनिक खाद से मुक्ति मिलेगी साथ ही हमारी फसल का उत्पादन भी बढ़ेगा . गाँव के ही अन्य किसानों का कहना है कि केंचुआ खाद के प्रयोग से खेत की भूमि सुधार होगा, रासायनिक खाद के खर्चे कम होंगे, खरपतवार नियंत्रण आसान होगा तथा फसलों की बीमारी प्रबंधन और कीट प्रबंधन आसान हो जाएगा।

आदिवासी विकास खंड खालवा ब्लाक के ग्राम लखनपुर रैयत के निवासी किसान नारायण चम्पालाल ने बताया कि ने बताया की हम सतपुड़ा जैविक कंपनी से जुड़े है , हम खेती किसानी के लिए जैविक खाद बना रहे है .  जिसे हम खेती में उपयोग में लेंगे , जो खाद बचेगा उसे कंपनी को देने का काम करेंगे . इससे हमे आय भी होगी . हमारे गाँव में पंद्रह सदस्य सतपुड़ा जैविक प्रोड्यूसर कंपनी से जुड़े हैं .

लखनपुरबंदी के किसान शिवनारायण ने बताया कि रासायनिक खाद से जमीन खराब हो रही है , जैविक खाद को सर्वोत्तम खाद माना जाता है . इससे हम हमारी जमीन को बचा सकते है . हमने सतपुड़ा जैविक कंपनी से जुड़कर , बैंक से ऋण लेकर जैविक खाद बनाने हेतु शेड तैयार किया .

सतपुड़ा कंपनी ने डी.डी.एम. रवि मोरे जी की प्रेरणा और म०प्र० ग्रामीण बैंक के सहयोग द्वारा JLG बनाकर लगभग 100 उत्पादन इकाईयां तैयार कर किसानों को जैविक एवं प्राकृतिक खेती के बारे में समझाते हुए, वर्तमान समय में प्राकृतिक खेती के महत्व पर विस्तार से जानकारी दी।

सतपुड़ा जैविक प्रोड्यूसर कंपनी के द्वारा खंडवा जिले के अंतर्गत आने वाले जूनापानी, गारबेडी, भागपुरा, लखनपुरबंदी, सेमल्या, मीरपुर, हसनपुरा, जामदड, कुम्हारखेड़ा आदि क्षेत्रो में संयुक्त देयता समूह (JLG) बनाकर किसानों को जागरूक और प्रशिक्षित कर प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन देने की दिशा में प्रशंसनीय कार्य किये जा रहे हैं। प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान कंपनी के अधिकारियों ने कृषकों को बताया कि भारत सरकार किसानों को प्राकृतिक खेती को अपनाने के लिए प्रोत्साहन दे रही है।

कम्पनी के फील्ड आफिसर संदीप कटारे ने बताया कि किसानों ने जैविक तरीकों से आधुनिक खेती में अब गौवंश के महत्व को स्वीकारते हुए, गौमूत्र एवं गाय के गोबर का प्रचुरता से उपयोग करने, मानव उदर पोषण हेतु अनाज की पूर्ति के लिए गौ एवं पशु-पालन के साथ खेती-किसानी के मिश्रित प्रबंधन हेतु किसानों को गोबर, गोमूत्र, खेती के अपशिष्ट तथा केंचुआ खाद आदि के द्वारा मिट्टी की खोयी हुई उर्वरा शक्ति वो वापस हासिल कर गौ आधारित खेती के जरिए मिट्टी में कार्बन कंटेट बढ़ाकर अनाज, फल, सब्जियों आदि खाद्य पदार्थों में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ाने का प्रशिक्षण दिया गया।वर्मी कम्पोस्ट लगभग 90 दिन में बनकर तैयार हो जाता है। इसमें सूक्ष्म पोषित तत्वों के अलावा 2.5 से 3% नाइट्रोजन, फास्फोरस 1 से 2 %, 1.5 से 2% सल्फर तथा 1.5 से 2% पोटाश पाया जाता है। इस खाद में बदबू नहीं होती तथा मक्खी, मच्छर भी नहीं बढ़ते अतः वातावरण स्वस्थ रहता है।

सतपुड़ा जैविक प्रोड्यूसर कंपनी के सी.ई.ओ. शुक्ला ने कहा कि वर्तमान में मिट्टी कम उपजाऊ होती जा रही है जिससे फसल उगाना मुश्किल होता जा रहा है। लगातार रासायनिक खादों के प्रयोग से कम होती जा रही मिट्टी की उर्वरकता को जैविक/केंचुआ खाद के उपयोग से बढ़ाया जा सकता है। मिट्टी वह जगह है जो अनगिनत जीवों का घर है। उन जीवों के कारण ही मिट्टी में सब कुछ पैदा होता है इसलिए बायोडायवर्सिटी को जिंदा रखना सबसे ज्यादा ज़रूरी है। इस खाद को तैयार करना , प्रशिक्षण के पश्चात् बहुत आसान है। प्रत्येक माह एक टन खाद प्राप्त करने हेतु 100 वर्गफुट आकार की नर्सरी बेड पर्याप्त होती है। केचुँआ खाद की केवल 2 टन मात्रा प्रति हैक्टेयर आवश्यक है। इस तरह तैयार की गयी खाद से सिंचाई के अंतराल में वृद्धि होती है। रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होने के साथ ही लागत में भी कमी आती है।पर्यावरण की दृष्टि से भूमि के जलस्तर में वृद्धि होती है। मिट्टी, खाद्य पदार्थ और जमीन में होने वाले प्रदूषण में कमी आती है। खेतों के ही कचरे का उपयोग खाद बनाने में होने से बीमारियों में कमी होती है। यह कचरा, गोबर तथा फसल अवशेषों से तैयार किया जाता है, जिससे पर्यावरण प्रदूषित नहीं होता है साथ ही इसके उपयोग के बाद 2-3 फसलों तक पोषक तत्वों की उपलब्धता बनी रहती हैं। इसके प्रयोग से सिंचाई की लागत में कमी आती है, फल, सब्जी, अनाज की गुणवत्ता में सुधार आता है, जिससे किसान को उपज का बेहतर मूल्य मिलता हैं। केंचुए में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीव मिट्टी का pH संतुलित करते हैं जिससे उपभोक्ताओं को भी पौष्टिक भोजन की प्राप्ति होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में इसके उपयोग से रोजगार की संभावनाएं भी उपलब्ध हो जाती हैं।

इस तरह सतपुड़ा जैविक प्रोड्यूसर कंपनी द्वारा किसानों को आत्म निर्भर बनाने की दिशा में उत्कृष्ट कदम उठाया जा रहा है।

By MPNN

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