“पत्थर की नाव” जो पानी मे तैरती भी है।
खास बात यह है कि इस पत्थर की नाव में प्रभु श्री राम, लक्ष्मण और माता सीता की मनमोहक कृतियों के साथ पतवार लेकर निषादराज केवट की कृतियां भी उकेरी गई है ।
50 से 60 किलो के एक मिंट स्टोन को 40 दिन की कड़ी मेहनत के बाद उसे नाव को आकार देकर, उसी एक पत्थर में नाव में प्रभु श्री राम, लक्ष्मण, माता सीता के साथ केवट की कृतियों को उकेरा गया है।
यह सब शिल्पकार दीपक विश्वकर्मा की मेहनत और उनपर प्रभु श्रीराम की कृपा से सम्भव हो सका।
दीपक पेशे से शिल्पकार हैं, जो आठ वर्ष की उम्र से शिल्पकला की साधना कर रहे हैं। दीपक बताते हैं उनका परिवार 5 पीढ़ियों से शिल्पकला के क्षेत्र में पत्थर पर प्रतिमाएं गढ़ने का कार्य कर रहा है। बतौर शिल्पी दीपक विश्वकर्मा महामहिम राष्ट्रपति से पुरुस्कृत हो चुके हैं।
दीपक ने बताया है कि वे भगवान विश्वकर्मा के वंशज हैं और प्रभु राम के भक्त हैं। जिस तरह भगवान विश्वकर्मा के वानर पुत्र नल और नील ने राम सेतु निर्माण के वक्त सबसे पहले प्रभु राम के नाम का स्मरण कर समुद्र में पत्थर डाले थे, जिन पर श्री राम लिखा था और वे तैरने लगे थे। उन्हीं के नाम का स्मरण कर उनका आशीर्वाद लेकर वे “पत्थर की नाव” को आकार देने में सफल रहे हैं।
22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होनी है। समूचा सनातन किसी ना किसी रूप में इस पावन मौके से जुड़ना चाहता है। ऐसे में ग्वालियर के एक शिल्पकार ने यूपी सरकार से सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर मैसेज करके आग्रह किया है कि उनके शिल्प “पत्थर की नाव” का प्रदर्शन किया जाए।
दीपक ने सोशल मीडिया एक्स पर मैसेज करके यूपी सरकार से आग्रह किया है कि वे पत्थर की नाव को राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में प्रदर्शन के लिए भेंट करना चाहते हैं। ताकि उन लोगों को ज़बाब दिया जा सके, जिन्होंने प्रभु श्री राम के अस्तित्व पर सवाल खड़े किए थे और उन्हें काल्पनिक बताया था।