अनन्त माहेश्वरी –
अनघड़ पत्थरों में अक्श तलाशता
उन्हें सुघड़ बनाने की कोशिश करता
इस कोशिश में चोटिल होता
लेकिन हिम्मत नहीं हारता
वह बेजान पत्थरों में जान डालता
शिल्पी का शिल्प जब साकार हुआ
बेजान थी वह मूरत जिससे उसे प्यार हुआ
एक दिन कला का पारखी आया
ले गया उस मूरत को
जिसे शिल्पी ने दिलो जान से सजाया
काश की ऐसा होता
शिल्पकार का दिल भी पथ्थर का होता
तो अपनी प्यारी मूरत के जाने पर
वह नहीं रोता
वह नहीं रोता