मनीष अहिरवार की कलम से –
न पूछ सनम, मैंने क्या-क्या
करामात देखी है
मैंने उजालों में अंधेरा,
और अंधेरों में घनी रात देखी है
मैंने रंग बदलते, नेताओं में
गिरगिट की, जात देखी है
उनके गिरते हुए, जमीर की
पूरी की पूरी, जमात देखी है
न पूछ सनम, मैंने क्या-क्या करामात देखी है
मैंने प्रजातंत्र में, वोटों की
बटती खैरात देखी है
हुकूमत की, फ़ितरतों से
बेबस लाचारों की, मात देखी है
न पूछ सनम, मैंने क्या-क्या करामात देखी है
मैंने तमाशों की, अंधेरगर्दी,
और दिखावे की, बात देखी है
खोखले विकास के, दावों की
झूठी अधूरी, सौगात देखी है
न पूछ सनम, मैंने क्या-क्या करामात देखी है
न गुमान कर, सत्ता के बूते पर ए-जालिम
हमने सिकंदर की भी, औकात देखी है
अब तो तारे भी नही रहे, आसमान में
हमने टूटते सितारों की, बारात देखी है
न पूछ सनम, मैंने क्या-क्या करामात देखी है
मजलूमों की वेदना, तुम क्या जानो
हमने पीड़ाओं की, जिरात देखी है
भयभीत न करो, जेलों के बवंडर से
हमने हिटलर की भी, हवालात देखी है
न पूछ सनम, मैंने क्या-क्या करामात देखी है
स्वतंत्र लेखक:- मनीष अहिरवार
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